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حقيقة الحجاب في الإسلام (هندي)

الوصف

مقالة باللغة الهندية، وتحتوي على بيان لبعض الحِكم من فرضية الحجاب، والعواقب الوخيمة المترتبة على خلع الحجاب وتفشي السفور والتبرج، كما تحتوي على بيان اشتداد الحملات التعسفية ضد ارتداء الحجاب في الآونة الأخيرة، وقد ردّ عليها صاحب المقالة وبيَّن أن الحجاب ليس بظلم للمرأة أو قمع لحريتها الشخصية؛ بل هو وقاية وحماية لها بإذن الله.

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    इस्लाम में पर्दा की वास्तविकता

    ] हिन्दी & Hindi &[ هندي

    साइट इस्लाम धर्म

    संशोधनः अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह

    2013 - 1434

    حقيقة الحجاب في الإسلام

    « باللغة الهندية »

    موقع دين الإسلام

    مراجعة : عطاء الرحمن ضياء الله

    2013 - 1434

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    बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

    मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।

    إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:

    हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद:

    इस्लाम में पर्दा की वास्तविकता

    इस्लाम में पर्दे की प्रथा का विरोध इस समय बहुत से देशों में हो रहा है। कई देशों ने तो पर्दे और स्कार्फ़ पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। मुस्लिम महिलाओं को पर्दे के कारण बहुत से अवसरों पर भेदभाव का सामना भी करना पड़ रहा है। हर क्षेत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चर्चा तो बहुत है और हर कोई इस स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए अपना मन-पसन्द जीवन व्यतीत कर रहा है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का क़ानून मुस्लिम महिलाओं पर लागू नहीं होता।

    इसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सहारा लेकर दूसरी महिलाओं को अपने मनमाने वस्त्र धारण करने की पूरी आज़ादी है। सच तो यह है कि उन्हें वस्त्र धारण न करने की भी पूरी आज़ादी है। वो अगर पारदर्शी वस्त्र धारण करके अपने अंगों की नुमाइश (अंग-प्रदर्शन) करें तो इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। उल्टे इसका विरोध करने वालों की ज़बान व्यक्तिगत स्वतंत्रता की धौंस देकर बन्द कर दी जाती है। वही लोग जो पर्दे का विरोध करते हैं, फ़ैशन परेडों में अर्धनग्न युवतियों के शरीर के एक-एक अंग को लालसा भरी दृष्टि से देखते नहीं थकते।
    ये भी अपनी जगह सत्य है कि धर्म और आस्था के आधार पर ईसाई ननों को स्कार्फ़ लगाने और अपना पूरा शरीर ढकने की अनुमति तो है, परन्तु इसी आधार पर मुस्लिम महिलाओं को यह अधिकार देने को कोई तैयार नहीं है। एक स्त्री अगर पुरुष का वस्त्र धारण कर ले तो इस पर किसी को आपत्ति नहीं होती, परन्तु वही स्त्री अगर पर्दा या स्कार्फ़ लगा ले तो उस पर आक्षेपों की बौछार होने लगती है।
    अख़बारों में, पत्रिकाओं में, फिल्मों में, टी॰वी॰ और इंटरनेट पर इस समय पूरी तरह से यौन अराजकता का बोलबाला है, इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। हर तरफ़ युवक-युवतियों की कामुकता की भावना को प्रज्वलित करने की कोशिश की जा रही है, इस पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। हर तरफ़ अभद्र और अश्लील विज्ञापनों की बाढ़ आई हुई है, परन्तु इस पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। परन्तु अगर एक मुस्लिम महिला अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते हुए और अपने आपको पुरुषों की भूखी निगाहों से बचाने के लिए सभ्य और शालीन वस्त्र धारण कर लेती है तो पूरा समाज उसके विरोध में उठ खड़ा होता है।
    समाज का चाहे आम नागरिक हो या बुद्धिजीवी वर्ग, पता नहीं किन अज्ञात कारणों से ये स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि हर तरफ़ तेज़ी से फैलती हुई यौन अराजकता और बलात्कार का संबंध भड़कीले वस्त्रों से भी है और इनका संबंध हर तरफ़ फैले हुए उत्तेजित करने वाले विज्ञापनों से भी है और उन फिल्मों से भी है जो अश्लीलता और कामुकता को भड़काने में लगी हुई हैं। स्थिति कितनी भयावह है इसका प्रमाण इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है। हमारे देश में सन् 2010 में—

    बलात्कार की घटनाएं

    22,172

    सम्बन्धियों द्वारा अपराध

    94,041

    अपहरण

    29,795

    छेड़छाड़

    40,613

    (www.ncrb.nic.in)

    ये आंकड़े तब हैं जब 69 घटनाओं में से मात्र एक घटना दर्ज कराई जाती है।

    कोई भी सभ्य और शालीन समाज इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकता। इसके परिणाम बड़े ही भयावह होंगे। यह बात समझना भी कोई बहुत मुश्किल नहीं है कि मात्र पुलिस और क़ानून के भय से इस स्थिति पर क़ाबू नहीं पाया जा सकता।

    इस्लाम ने, जो कि ईश्वर द्वारा रचित एक संपूर्ण जीवनशैली का नाम है, इस भयावह स्थिति को उत्पन्न होने से पहले ही इसे रोकने के कई उपाय किए हैं और इन्हें आस्था से जोड़ दिया है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज में यौन अराजकता और बलात्कार का अनुपात बहुत कम है। पर्दा इन्हीं उपायों में से एक है। इन समस्त उपायों का सारांश निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है—

    (1) पुरुष और स्त्री के कार्य क्षेत्र का निर्धारण, पुरुष का कार्यक्षेत्र जीविका का उपार्जन और स्त्री का कार्यक्षेत्र उसका घर।

    (2) पुरुष और स्त्री के अनावश्यक और स्वतंत्र मेल-मिलाप पर प्रतिबंध।

    (3) महरम और ग़ैर-महरम रिश्तों का निर्धारण। (महरम उसे कहते हैं जिनमें आपस में विवाह नहीं हो सकता। ग़ैर-महरम वो लोग होते हैं जिनमें आपस में विवाह हो सकता है।)

    (4) पुरुषों को आदेश दिया गया कि वह स्त्रियों को न तो अनावश्यक देखें न ही उनसे मिलें।

    (5) स्त्रियों को भी आदेश दिया गया कि वह पुरुषों को न तो अनावश्यक देखें न उनसे मिलें। अगर मिलना आवश्यक हो तो पर्दे में रहते हुए मिलें।

    (6) स्त्रियों को आदेश दिया गया कि जब वह घर से बाहर निकलें तो पर्दा धारण करके निकलें।

    (7) पुरुष और स्त्री दोनों को आदेश दिया गया कि वह ग़ैर-महरम लोगों से एकांत में कदापि न मिलें।

    (8) महरम संबंधियों के सामने शरीर ढकने या खुले रखने की सीमाओं का निर्धारण किया गया।

    (9) स्त्री अपना सौंदर्य किन-किन लोगों के सामने ज़ाहिर कर सकती है इसकी सीमा का निर्धारण किया गया।

    उपर्युक्त उपायों पर अगर थोड़ा-सा चिंतन-मनन कर लिया जाए तो यह बात सरलता से समझ में आ जाएगी कि इन उपायों को व्यवहार में लाकर महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को समाप्त किया जा सकता है। अर्थात् पर्दा स्त्री की दासता का नहीं, उसकी सुरक्षा और स्वतंत्रता का बोधक है। इस प्रकार के विचार समाज के कई बुद्धिजीवी लोगों के भी हैं और वह समय-समय पर इसे व्यक्त भी करते रहते हैं—

    (1) आंध्र प्रदेश के डी॰जी॰पी॰ श्री दिनेश रेड्डी ने अभी कुछ समय पहले ये विचार व्यक्त किया कि तेज़ी से बढ़ते हुए बलात्कार की घटनाओं के लिए महिलाओं के उत्तेजित और भड़काऊ वस्त्र एक बड़ा कारण है।

    (2) सन् 2005 में मुंबई विश्वविद्यालय के उपकुलपति श्री विजय खोले ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि ‘‘लड़कियों का कम और भड़काऊ कपड़े पहनना बलात्कार का मुख्य कारण है।’’

    (3) दिसम्बर 2011 में मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण समाज ने घोषणा की, कि जींस एक उत्तेजक वस्त्र है और लड़कियों को इसे नहीं पहनना चाहिए।

    समाज में जो लोग पर्दे का विरोध करते हैं उन्हें चार भागों में विभाजित किया जा सकता है—

    (1) वह लोग जिनके समक्ष इस्लाम की जीवन-व्यवस्था और उसकी आस्था अभी स्पष्ट रूप से नहीं आ पाई है।

    (2) वह लोग जिनकी मानसिकता इतनी बिगड़ी हुई है कि स्त्री के शरीर को निहारे बग़ैर उनकी प्यास ही नहीं बुझती।

    (3) वह महिलाएं जो यह समझती हैं कि उनका सौंदर्य नुमाइश के लिए है और उन्हें इसके प्रदर्शन का पूर्ण अधिकार है।

    (4) वह लोग जो पर्दे का विरोध मात्र इसलिए करते हैं कि, इस्लाम के हर क़ानून का विरोध करना है, चाहे वह क़ानून समाज के लिए कितना ही लाभदायक क्यों न हो।

    इन सभी लोगों से निवेदन है कि विरोध करने से पूर्व वह इस्लाम की संपूर्ण जीवन-व्यवस्था, विशेष रूप से पर्दे के क़ानून का एक बार निष्पक्ष भाव से अध्ययन अवश्य कर लें।
    पर्दे के विरोध का आधार कितना कमज़ोर है इसकी सत्यता को इसी बात से समझा जा सकता है कि आज पूरे संसार में इस्लाम को स्वीकार करने वाले लोगों में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक है। वहीं महिलाएं जिन्हें पर्दे से भयभीत होकर इस्लाम से दूर भागना चाहिए था, वही आज पर्दा धारण करके अपने आपको सुरक्षित और स्वतंत्र महसूस करती हैं।
    इनमें से कुछ महिलाओं की अनुभूति प्रस्तुत है—

    (1) ‘‘जिन सड़कों पर मैं शॉर्ट और बिकिनी पहनकर घूमा करती थी, उन्हीं रास्तों पर जब मैं पहली बार इस्लामी वस्त्र धारण करके निकली तो दुकाने भी वही थीं, लोग भी वही थे, पर मैं यह अनुभव कर रही थी कि जैसे मैं पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गई हूँ और सारी जंज़ीरें टूट गई हैं। हिजाब (पर्दा) धारण करने के बाद मैंने अनुभव किया कि जैसे मेरे कंधों से एक भार उतर गया हो। अब मैं अपना सारा समय शॉपिंग में या मेक-अप करने में या अपने बालों को संवारने में नहीं लगाती। अब मैं अपने आपको पूर्ण रूप से स्वतंत्र महसूस करती हूँ।’’ — सारा बोक्कर, मियामी, अमेरिका

    (2) ‘‘ईश्वर की कृपा से अब मैं मुस्लिम हूँ। मैं हिजाब (पर्दा) को एक मुकुट के रूप में धारण करती हूँ। इससे जहाँ एक ओर मुझे शक्ति प्राप्त होती है, वहीं दूसरी ओर इस्लाम के बारे में सही जानकारी प्रदान करने का अवसर भी प्राप्त होता है।’’ —मरीटा रेहाना, आस्ट्रेलिया

    (3) ‘‘ये बिल्कुल ग़लत धारणा है कि मुस्लिम महिलाएं अपने पति के दबाव के कारण पर्दा धारण करती हैं। सत्य तो यह है कि इससे उसकी मर्यादा की रक्षा होती है और वह दूसरों के कंट्रोल से अपने आपको बचा लेती है। दया योग्य हैं वह ग़ैर-मुस्लिम महिलाएं जो अपने शरीर की नुमाइश करती फिरती हैं।’’ — नकाता ख़ौला, जापान

    (4) ‘‘जब मैंने पहली बार हिजाब (पर्दा) धारण किया तो मुझे प्रसन्नता के साथ संतोष का भी अनुभव हुआ। अब मैं अपने आपको सुरक्षित महसूस करती हूँ और लोग पहले से अधिक मेरा आदर करते हैं। — सिस्टर नूर, भारत

    (5) ‘‘इस्लाम की पर्दा-व्यवस्था, जो नारीय गरिमा को बढ़ाती और उसके शील व नारित्व की सुरक्षा करती है, से अति प्रभावित होकर मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है। नक़ाब अब मेरे लिए एक सुरक्षा कवच है....।’’ — कमला सुरैया, तमिलनाडू

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